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माँ

वयसंधि में सदा के लिए
छोड़ जाने वाली
मेरी माँ
आज भी मेरे आसपास है
एक सुखद अहसास है।
रोज उतरती है वह
मेरे मन में
समाधानों की पिटारी लेकर।
हर दुख में थपथपाती है
हर उलझन में सहलाती है
हर गुत्थी सुलझाती है।
एक मुस्कान
मेरे सख्त भिंचे होंठों पर
नरमी फैला कर चली जाती है
फिर फिर आने के लिए।
मुझे मातृ ऋण से
मुक्त कर
अपना संतान ऋण चुकाती है।
माँ आती है
बतियाती है
रोज आती है मेरे पास माँ।

१५ नवंबर २०१५  

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