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अनुभूति में नव्यवेश नवराही की रचनाएँ-

कविताओं में-
चार छोटी कविताएँ
तीन नेत्रों वाला
तुमने मेरे लिए..
पता नहीं
लौट आओ
वो बूढ़ी औरत
शून्य से अनंत

  तुमने मेरे लिए...

क्या नहीं किया तुमने मेरे लिए
जब मैं कुछ नहीं कर सकता था
तो तुमने
हीर बनकर चूरी खिलाई मुझे
और मेरी तपती हुई छाती पर
ठंडी और मीठी छाँव कर दी थी।
जब नियति ने
दे ही दिया था तुम्हें धोखा
तुम्हें भी था पता पर
तुम कच्चे पर
तैर आई थी मेरे पास
जैसे कच्चे धागे से
खिंचा चला आता है कोई
और जब
जब, आँधियों की तसल्ली न हुई
तो तुमने तपती हुई रेत की भी
परवाह नहीं की थी
नंगे पाँव चल पड़ी थी तुम
मेरे लिए...
बुरा तो तुमने तब भी नहीं किया था
जब अपने भाइयों को देख
मेरे तीर झाड़ पर टाँग दिए थे तुमने
यह तो
मेरी ही किस्मत में मरना लिखा था
वर्ना, तुम तो चली ही आई थी मेरे साथ
मेरे कहने पर
ऐसा न भी हो
तो भी शक नही किया जा सकता
तुम्हारे समर्पण पर।

१० मार्च २००८

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