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न जाने कब चाँद निकलेगा

जब सूरज चला जाता है
अस्ताचल की ओट में
और चाँद नहीं निकलता है
दिखती है उफक पर
पश्चिम दिशा की ओर
लाल लकीरें
पूरब में काली आँखों वाला राक्षस
खोलता है मुँह
लेता है जोर की साँसें
चलती है तेज हवाएँ
लाल लकीरें डूब जाती हैं
फिर सब हो जाता है प्रशांत
मैं पाता हूँ स्वयं को
एक अंध विवर में
हो जाता हूँ विलीन
तम से एकाकार
खो जाता है मेरा वजूद
न जाने कब चाँद निकलेगा।

१३ अप्रैल २०१५

 

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