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अनुभूति में नीरज शुक्ला की रचनाएँ -

कविताओं में--
एक नीली नदी
कृष्ण विवर सी
बदलते परिवेश
शब्दों को

हाइकु में--
नीरज के हाइकु

संकलन में-
प्रेमगीत-- प्रेम


  कृष्ण विवर सी

कृष्ण विवर सी उसकी
खामोशी में
समाया जा रहा है
मेरा अस्तित्व।
निश्छल, शांत भाव मुद्रा
सी स्थिर है वह
ज्यों निर्जन श्मशान में
तपस्यारत कोई साधिका।
बींध रहा है उसका
अनजाना आकर्षण मुझे
निर्जन उपत्काओं में
कानाफूसी की तरह।
छा रही है वह मुझ पर
जैसे सुदूर अँचल से
आती हुई कोई आँधी।
विलीन हो रहा हूँ मैं
उसकी धुँध में
नए जीवन के लिए।
मैं फिर मिलूँगा
परिवर्तन के साथ
और मेरा नाम प्रभात होगा।

 

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