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अनुभूति में नीरज शुक्ला की रचनाएँ -

कविताओं में--
एक नीली नदी
कृष्ण विवर सी
बदलते परिवेश
शब्दों को

हाइकु में--
नीरज के हाइकु

संकलन में-
प्रेमगीत-- प्रेम


  शब्दों को

शब्दों को जब-जब बाँधा है मैंने
विचार बने।
शब्दों को जब-जब सँवारा हैं मैंने
कविता बनी।
विचारों को जब भी सँभाला है
दर्शन बना।
विचारों को जब भी खंगाला है
कविता बनी।
दर्शन का जब भी गुंजन किया
उपहास उड़ा।
दर्शन का जब भी मंथन किया
कविता बनी।
किसी के आँसू देखे
तो कविता बनी।
कोई दर्द सहा
तो कविता बनी।

 

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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