अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

अनुभूति में निर्मला सिंह की
रचनाएँ -

कविताओं में-
औरत
विषुवत रेखा
मैं मार दी जाऊँगी

  मैं मार दी जाऊँगी

मेरी आग बरसाती आँखें
कसती भिंचभिंचाती मुठि्ठयाँ
कंपकंपाते-फरफराते होंठ
थरथराता-क्रोधित शरीर
जबाब दे बैठता है,
जब खंडहरों में चीखते हैं
मासूम आहत परिन्दे
सियासियों, सत्ताधारियों की
इमारतों में कैद
बिलखती-तड़पती हैं
भुखमरी, बेचारगी, लाचारी की
चादर ओढ़े
मेहनतकशों की देह
मेरी अपनी ही आँखों में
गुम हो जाते हैं
अपनी पलकों पर सजे
बेकसूर रंगीन सपने
और मुझे गांधारी बना दिया जाता है
चारों ओर की चीखें-चिल्लाहटें
मेरे कानों की परतों को
फाड़ रही हैं फिर भी मैं बहरी हूँ
गिद्ध और बाज से शैतान
व्यस्त हैं
इन्सानियत को नोंचने-कुतरने में
फिर भी मैं गूँगी हूँ
बोल नहीं सकती,
सम्पूर्ण विकलांगता ही
मेरे जीने का कारण है
जिस दिन मेरी अपंगता
समाप्त हो जाएगी
मैं, मार दी जाऊँगी।

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter