अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

अनुभूति में ओम प्रकाश की रचनाएँ—

छंदमुक्त में-
अगर तुम मुझे अपना सको
एक राम और कितने रावण
जिंदगी की नाव
रिश्ते नहीं मरते
वक्त लगता है
साथ

 

अगर तुम मुझे अपना सको

शिखर पर पहुँच कर
कभी सोचा ही नहीं था
कि तुम्हें ही भूल जाना होगा
तुम ही तो वो बुनियाद थी
जिसकी दहलीज के सहारे
बढाया था मैंने स्वप्न की ओर
पहला कदम
उस वक्त सिर्फ तुम थी
और तुम्हारा बेशुमार प्यार।

पर वक्त के इस करवट में
जीवन के जिस शिखर पर
मैं हूँ वहाँ तुम्हारा होना
मेरा असफल हो जाना है।

सोचता हूँ
तुम मेरे जीवन की वह पौध हो
जिसकी जीवनमयी जड़ों को तोड़कर
मेरा शिखर पर होना बेमानी है।

चाहता हूँ लौट आऊँ शिखर से
तुम तलक
अगर तुम मुझे अपना सको
शिखर की आपाधापी से दूर
तुम मेरे जीवन को
नया जीवन दे सको।

१ सितंबर २०१४

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter