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अनुभूति में ओम प्रकाश की रचनाएँ—

छंदमुक्त में-
अगर तुम मुझे अपना सको
एक राम और कितने रावण
जिंदगी की नाव
रिश्ते नहीं मरते
वक्त लगता है
साथ

 

जिंदगी की नाव

जिंदगी की नाव
को चलना ही है
तूफानों में
बिना रुके, बिना थके
ताकि चलती रह सके
जीवनदायिनी साँस
जिंदगी की नाव को गति देते हुए
ताकि जलती रहे लौ
आत्मा की
तब तक
जब तक कि
जिंदगी की नाव
समय के सागर में न मिल जाए।

बिकी हुई साँसे
गिरवी रखी आत्मा से
जिंदगी की नाव को
भले मिल जाए किनारा
पर मुक्ति कहाँ है?

मुक्त होना है
समय से
समय के झंझावतों से
समय के सवालों से टकराते हुए
उस मुकाम पर पहुँचना है
जहाँ सिर्फ मैं हूँ
मेरे साथ नहीं है कोई पहचान
न कोई धर्म,न कोई जाति
न कोई पद,न कोई प्रतिष्ठा
न कोई लोभ, न कोई घृणा
मेरे साथ है सिर्फ प्रेम
प्रेम से भी, अप्रेम से भी
ताकि चलती रह सके
जीवन की नाव
घनघोर अँधेरे में भी
निरंतर।

१ सितंबर २०१४

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