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अनुभूति में प्रदीप कांत की रचनाएँ -

गीतों में-
क्या लिखते हो
काशी के हम पण्डे जी
ख्वाब वक्त ने जिनके कुतरे
छेदों वाला पाल बुना रे

लिक्खें किसको अब चिट्ठी

अंजुमन में-
इतना क्यों बेकल
खुशी भले पैताने रखना
थोड़े अपने हिस्से
धूप खड़ी दरवाज़े

छंदमुक्त में-
आजकल
कितने ही राम
कैसे
चिड़िया और कविता
चिड़िया की पलकों में
दीवारें
बचपन
मित्र के जन्म दिन पर
यों ही
विश्वास
शब्द पक रहे हैं

 

लिक्खें किसको अब चिट्ठी

लिक्खें किसको
अब चिट्ठी

जब से मुआ ‘फोन’ हुआ है
पेन हमारा मौन हुआ है
पड़ा जेब में मुँह लटकाऐ
जैसे करी
किसी ने पिट्टी

कौन पुराने कौन नये
हुए वहीं के जहाँ गऐ
वो मिट्टी आवाज़ लगाती
नहीं छोड़ती पर
ये मिट्टी

फिरते सीना ताने हम
हुए मशीनों वाले हम
पीसे तो अम्मा ही पीसे
नहीं चले है
हमसे घट्टी

३० जून २०१४

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