अनुभूति में
प्रेमचंद गाँधी की रचनाएँ
छदमुक्त में-
एक दुआ
एक बाल
मम्मो के लिये
मेरा सूरज
याद |
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मम्मो के लिये
मम्मो
क्या तुमने अपने बच्चों की हँसी में
कभी अपनी हँसी देखी है
या उनकी जि़द में
मेरी जैसी जिद देखी है
ये जि़द भी क्या चीज़ है मम्मो
तुम्हारी जिद में मैं
और मेरी जिद में तुम
दोनों परेशान होते थे
अपने बच्चों की जिद में
परेशान होतीं तुम
क्या तुम्हें मेरी जिद भी कभी
याद आती है
हम दोनों की थीं जो साझा जिद
उन्हें हम बच्चों के मार्फत
पूरा कर रहे हैं मम्मो।
२८ फरवरी २०११ |