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अनुभूति में राजर्षि अरुण की रचनाएँ

जानना चाहता हूँ
तुम भी क्या करो
तुम्हारे जाने के बाद
नारी पत्ती जैसी होती होगी
मेरा कनकौआ
सपने में और बाहर तुम
समय की पीड़ा

 

जानना चाहता हूँ

जानना चाहता हूँ मैं
जीवन को
उसकी अन्यतम गहराइयों में
इसलिए उतरना चाहता हूँ मैं
दुख की गहन गुफ़ा में
तैरना चाहता हूँ
नकारात्मकता की अंधकारमय नदी में
जैसे तैरती है कोई मछली
धारा के विरोध में
मुझे लगता है
मछली प्राणवंत हो उठती होगी
उल्टी धारा से खेलते हुए
अनायास ही चहचहा उठती होगी चिड़िया
उठती हुई ऊपर
धरती से ऊपर
गुरुत्वाकर्षण के विरोध में

इसलिए बिंधना चाहता हूँ मैं
हज़ार-हज़ार काँटों से
कि अनुभव कर सकूँ कि
उस बिंधने में मैं अपने अस्तित्व के
कितने क़रीब था
अनुभव कर सकूँ
उसे जो बिंधा!

गुदगुदाने के भाव से भरकर
परम आस्था और अहोभाव से भरकर
मृत्युसहोदर परम पीड़ा की गोद में
नवजात शिशु-सा निश्चिंत होकर
उस संजीवनी का पान करना चाहता हूँ
सुकरात का उत्तराधिकारी बनकर

शायद परम किरण का स्पर्श
तभी होता है
ज़िंदगी को!

16 मार्च 2007

 

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