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अनुभूति में राजेश्वरी पांढरीपांडे की
रचनाएँ -

:छंदमुक्त में-
अपनापन
अभिमानी
उतना ही
खो दिये
चम्मचभर मैं
नासमझ
ये रिश्ते

 

अभिमानी

जलाने पर
जल दिये
इसलिये
कहे गये
दिए- रास्ते के !

बुलाने पर
आ गये
इसलिये
कहे गये
पाहुन पहचान के !

तोड़ने पर
टूट गये
इसलिये
कहे गये
फूल- बेला के!

मनाने पर
मान गये
इसलिये
कहे गये
मीत मानस के!

जो जले नहीं
आये नहीं
मानस के
जो जले नहीं
टूटे नहीं
माने भी नहीं
क्या उनके पास से
गुज़र जाओगे
चुपचाप
बिना कहे कुछ भी
अपने आप?

 

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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