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अनुभूति में आर पी शुक्ल की रचनाएँ-

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दस हाइकु

 

पाँव के निशाँ

यूँ तो हर पाँव
अपने निशान छोड़ता है
पर, हर निशान
स्थाई और अनुकरणीय नहीं होता
क्या कभी तुमने मुड़कर देखा है
कि तुमने
अपने पाँवों के निशाँ
कहाँ छोड़े थे-
मिट्टी के ढेर या
रेत की कगार में?
यदि थे रेत पर
तो हवा ने मिटा दिए होंगे
यदि थे मिट्टी पर
तो बौछार से धुल गए होंगे।
वह देखो मेरे पैरों के निशान
सदियों बाद आज भी चट्टानों पर अंकित हैं
ऐसे निशाँ मात्र चलने से नहीं
चलने की शैली से बनते हैं
और जिस दिन
तुम्हें चलने की शैली आ जाएगी
मेरे दोस्त!
तुम मुझसे ईर्ष्या नहीं करोगे।

९ नवंबर २००९

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