अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

अनुभूति में संजय कुंदन की रचनाएँ

कविताओं में
अधिकारी वंदना
ऐसा क्या न कहें या ऐसा क्या न करें
कुछ ऐसा था
गाइड
मित्र
यमुना तट पर छठ

 

 

अधिकारी वंदना

हे अधिकारी
रहता हूँ हर पल सतर्क
कि मेरी क़मीज़ न दिखे
आपकी क़मीज़ से ज्‍यादा सफ़ेद
न चमके मेरे दाँत
आपके दाँतों से ज़्यादा
रखता हूँ ध्यान
कि न देखूँ आपसे ज़्यादा बुद्धिमान
इसलिए कस कर पकड़े रखता हूँ
बुद्धि की लगाम
हे अधिकारी
रहें आप प्रसन्न
सोचें अधिकार प्रदर्शन के
नित नये ढंग
हो सके तो करें मुझे अपमानित
एकदम नये तरीके से
हे अधिकारी
हे अवतारी
हे कृष्ण मुरारी

24 जुलाई 2007

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter