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अनुभूति में संजय कुंदन की रचनाएँ

कविताओं में
अधिकारी वंदना
ऐसा क्या न कहें या ऐसा क्या न करें
कुछ ऐसा था
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यमुना तट पर छठ

 

 

  ऐसा क्या न कहें या ऐसा क्या न करें

इस बात की पूरी गुंजाइश है
कि कल रात सबने एक ही क़िताब पढ़ी हो
सबने आईने के सामने
एक ही काल्पनिक प्रश्न के
एक ही उच्चार को दोहराया हो

संभव है सबने सुबह-सुबह
एक ही मंदिर में
एक ही देवता के सामने हाथ जोड़े हों
इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता
कि सबके पिता की पेंशन बराबर हो
यह भी हो सकता है
यह उनका पचीसवाँ साक्षात्कार हो
वे पाँचों जो अजनबी थे एक दूसरे के लिए
एक दूसरे को प्रतिद्वंद्वी की तरह देख रहे थे।
अब से थोड़े ही देर बाद
एक छोटे कमरे में बैठे कुछ लोग
उनमें से एक को सफल घोषित करने वाले थे
अब से थोड़े ही देर बाद
यह तय हो जाना था
कि उनमें से कोई एक ऐसा है
जो थोड़ा अलग है
जो थोड़ा बेहतर है
वे पाँचों जो बिल्कुल
एक दूसरे की तरह लगते थे
एक दुसरे को देखते हुए सोच रहे थे
कि साक्षात्कार में ऐसा क्या कहें या क्या करें
या ऐसा क्या न कहें या ऐसा क्या न करें
कि चारों से अलग नज़र आएँ।

24 जुलाई 2007

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