| अनुभूति में 
					सत्येश भंडारी 
					की रचनाएँ -
 चुनाव कविताएँ-कार और सरकार
 प्याज और चुनाव
 
                  
                  हास्य व्यंग्य में-असली नकली दूध
 इंटरनेट पर शादी
 अँधेर नगरी और पर्यावरण
 जंगल का चुनाव
 पर्यावरण और कुर्सी
 
					छंदमुक्त में-अंधा बाँटे रेवड़ी
 एक क्रांति का अंत
 "गाँधी का गुजरात" या "गुजरात का 
					गाँधी"
 
					संकलन में-गाँव में अलाव-सर्द हवाओं के बीच
 ज्योति पर्व-क्यों कि आज दिवाली है
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					पर्यावरण और कुर्सी
 नये वर्ष में
 नेताजी में नया परिवर्तन आया,
 पर्यावरण के प्रति विशेष
 प्रेम उमड़ आया।
 घर से सड़क तक और
 सड़क से शहर तक,
 वृक्षारोपण का व्यापक
 कार्यक्रम बनाया।
 पूरे जोश और उत्साह से
 उसे सफल बनाया।
 पूछा,
 इतने वर्षों बाद
 अचानक यह पर्यावरण प्रेम क्यों?
 बोले
 वर्षों से पार्टी की
 सेवा कर रहा हूँ,
 लेकिन एक अदद कुर्सी के लिये
 तरस गया हूँ।
 आज के लगाये ये
 नन्हें नन्हें पौधे
 कल बड़े बड़े
 पेड़ बन जायेंगे।
 उनकी टनों लकड़ी आयेगी,
 जिससे सैंकड़ों हजारों
 कुर्सियाँ बनाऊँगा,
 अपने सभी भाई भतीजों
 और रिश्तेदारों को एक एक
 कुर्सी पर बिठाऊँगा।
 अपने पर्यावरण प्रेम का
 पूरा फायदा उठाऊँगा।
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