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याद
रह-रह कर

 

थोड़ी-सी जगह

बहुत देर से
पहाड़ पर बैठी
दो लड़कियाँ
देख रही हैं सहस्रधारा
लड़कियाँ देख रही हैं सहस्रधारा
और मैं देख रही हूँ
उनके भीतर सोये पहाड़ को
उनकी आँखों में
सपने हैं कल-कल करते
मन के भीतर
सोया है पहाड़
क्या करूँ
कि कम से कम
करवट ही ले ले पहाड़
और बन जाये थोड़ी-सी जगह
सपनों के लिए।

२ जून २०१४

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