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अनुभूति में डॉ. दिनेश चमोला शैलेश
की रचनाएँ—

दोहों में-
माँ
कविताओं में-
अनकहा दर्द
एक पहेली है जीवन
खंडहर हुआ अतीत
गंगा के किनारे
जालिम व्यथा
दूधिया रात
धनिया की चिंता
सात समुन्दर पार
पंखुडी
यादें मेरे गाँव की
ये रास्ते
रहस्य

संकलन में-
पिता की तस्वीर- दिव्य आलोक थे पिता

 

अनकहा दर्द

बरसात की
पहली फुहार
सर्दी की कडकती सुबह
या फिर
तपती ग्रीष्म के साथ ही
याद आती है मुझे
रामू लुहार की
घास-फूस की झोपडी
उसके बाहर
औजारों से भरी
लौह-भट्टी
भट्टी को तेज
करने की चाह में
धुएँ से
झड़ी सी बरसती
उसकी आँखें
भूख से बिलखते
मक्खियों से
भिनभिनाते उसके
नंग-धड़ंग बच्चो का टोला
पानी चूते
उपलों के बीच से
झाँकता उसकी आजीविका का स्वप्न
और
टप-टप टपकती
झोपडी के बीच
बच्चों को
खिलाने की
चिंता में डूबी
मुँह में पल्लू दबाये
रामू लुहार की पत्नी

आखिर क्यों
आती है यह! मुँहफिरी बरसात
या तन-मन जलाती भीषण गर्मी?
बे-मौसम में
हमारी खुशियाँ छीनने?
गर न आती यह
तो कितने औजार
और पैने हो जाते
कितने बिक भी जाते?
साथ ही साथ
पैने होते
रामू की पत्नी के सपने भी
इनसे बन जाते
दो-चार बच्चों के कपडे-लत्ते
और भी बहुत कुछ
अपने फटे पुराने
दिनों व कपडों को
सी लेने की लिए लाती वह
कोई प्रेरणा की सुई
व आशा का धागा
बार-बार
बरसात की
हर फुहार पर
सर्दी की हर सुबह
और
गर्मी की हर तपती दुपहरी में
अपलक
जाने क्यों याद आता है मुझे
रामू लुहार का
झुर्री-भरा हँसमुख चेहरा
हर फुआर से जुड़ा
उसका कतरा-कतरा जीवन
उसके नंगे बच्चों के
सतरंग सपने
व्याकुल पत्नी का
अनकहा दर्द !!

१६ अगस्त २००३

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