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अनुभूति में शिखा गुप्ता की रचनाएँ -

छंदमुक्त में-
अँधेरा
अधूरी ख्वाहिशें
आमदनी
उम्मीद
सारा जहान

 

अँधेरा

हम अँधेरे के हो गए
और अँधेरे में ही खो गए
उजालों की चाहत में
हम तन्हा थे अँधेरे में
उन उजालों की चुभन का
एहसास तो था
हमें कांटे मिले अँधेरे में
क्या अँधेरे ही जीवन में
अब रह गए
उजाले थे कभी इस
जीवन में
उन उजालों की बात
कुछ और थी
अब अँधेरे ही रास आ गए
और हम अँधेरे के
हो गए।

१ अक्तूबर २०१५

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