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अनुभूति में शिखा गुप्ता की रचनाएँ -

छंदमुक्त में-
अँधेरा
अधूरी ख्वाहिशें
आमदनी
उम्मीद
सारा जहान

 

उम्मीद

हर उम्मीद ने साथ छोड़ दिया
जैसे दिल से दिमाग ने रिश्ता
ही तोड़ दिया
कोई तो बताए कि क्या
करें और क्या न करे
कई बार सोचा
दौड़ कर लूट ले
उस कारवां को जो बीच में
हमें तन्हा छोड़ गया
उठ और चल
जहां तक राह दिखे
हिम्मत हारने
से कुछ नहीं होता
हौंसले बुलंद कर
मंजिल मिल ही जाती
है जब खुद पर
हो भरोसा अगर।

१ अक्तूबर २०१५

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