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फ़ैसला

फ़ैसला ये ज़रा सा मुश्किल है
ग़म मौसम है या मेरा दिल है

हद हुआ करती है समंदर की
आँसुओं का न कोई साहिल है

उससे मिलना भी उससे बचना भी
वो ही हाफ़िज है वो ही कातिल है

अहले-दिल चल पड़े तो राह बनी
और जहाँ रुक गए वो मंज़िल है

खुद ही वो शम्मा खुद ही परवाना
उसकी महफ़िल अजीब महफ़िल है

दास्ताने-हयात थी आधी
उससे मिलकर हुई मुकम्मिल है

सुबह आएगी ताज़ा-दम होके
रात 'श्वेता' ये माना बोझिल है

१ फरवरी २००६

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