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अनुभूति में सुनील सिंह सजवान
की रचनाएँ -

छंदमुक्त में-
बापू की डगर
मैं क्या हूँ
ये वही शहर है

 

बापू की डगर

मैं लेखक हूँ
लिख सकता हूँ
विचार सभी के
बदल सकता हूँ
कलम से राह
दिखा सकता हूँ
साथ तुम्हारे
चल सकता हूँ।
पर कदम मिलाने
कोई तो आये
कोई तो आये आगे
जो बापू की राह
पर निकल पड़े
जय हो जय-जय
भारत की
कोई तो कहने
सामने आये।
ये देश हो रहा
फिर से गुलाम
ये बात किसी के
समझ न आये
सभी भाग रहे
दौलत के पीछे
देश छूट रहा
सबसे पीछे।
नेता अफसर
लूट रहे हैं
कोई तो बचाने
देश को आये।
ध्यान से सुनना
बातें मेरी
कुछ कड़वी मिठी
लगे अभी
जब २१ वी सदी
में जाओगे
सोचो देश को
कैसा पाओगे।
न चेते तो
पछताओगे
घर-घर कर दो
ये ऐलान
अमर रहे ये
हिन्दुस्तान
आँच न इसपे
कोई आये
झुककर करो
इसे सलाम।
हिंसा की तुम
राह न पकड़ो
अहिंसा से तुम
काम करो
लाठी लेकर
तुम निकल पड़ो
बापू को और
महान करो।
रहे न कोई
भूखा नंगा
गरीबों का
सम्मान करो
बन्द करो ये
घोटाले
न देश को यों
बरबाद करो।
आज आँसू हैं
भारत की आँखों में
ये अपने दिलों से
पहचान करो
न तोड़ो तुम
प्यारे भारत को
भारत को और
महान करो।
लाठी लेकर तुम
निकल पड़ो
बापू को और
महान करो।

८ नवंबर २००३

 

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