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अनुभूति में सुनील सिंह सजवान
की रचनाएँ -

छंदमुक्त में-
बापू की डगर
मैं क्या हूँ
ये वही शहर है

 

ये वही शहर है

ये वही शहर है जहाँ
नफरत की हवाएँ चलती हैं
जहाँ मोहब्बत पल-पल
अपना दम तोड़ती है।
ये वही शहर हैं जहाँ
लाशो के ढेर दिखते हैं
जहाँ सुबह-सुबह आँखें
सभी की नम हुआ करती हैं।
ये वही शहर है जहाँ
दम हमारा घुटता है
जहाँ आज़ाद है सभी पर
खुद को गुलाम समझते हैं।
ये वही शहर है जहाँ
रोज हम मरा करते हैं
जहाँ छाये है मौत के बादल
और रह-रहकर बरसते हैं।
ये वही शहर है जहाँ
फूल भी काँटे लगते हैं
जहाँ टूटी हुयी चूड़ियों में
सुहागनों का दर्द दफन है।
ये वही शहर है जहाँ
गुमराह हुए नौजवान हैं
जहाँ थोड़े से लालच में
अपनों का करते कतल हैं।
ये वही शहर हैं जहाँ
दिलों में भरा डर है
जहाँ चेहरे पर है मासूमियत
आज बरसता उनपर कहर है।
ये वही शहर हैं जहाँ
धरा का स्वर्ग है
जहाँ पत्थर भी बोलते हैं।
सुन्दरता अजर अमर है।
ये वही शहर है जहाँ
पड़ोसी की बुरी नज़र है
जहाँ आन-बान है हमारी
ये अपना वही शहर है।
ये वही शहर है जहाँ
देश के अमर शहीद दफन हैं
जहाँ देश के खातिर न जाने
कितने लाल अमर हो गये हैं।

८ नवंबर २००३

 

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