अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

अनुभूति में सुशीला शिवराण की रचनाएँ-

छंदमुक्त में-
कुहासा
मैं बंकर हूँ
ऐ सनम

 

मैं बंकर हूँ

(यूँ तो बंकर एक शिलाखंड या प्रस्तर समूह मात्र है –निष्प्राण, मूक जो सदियों से सरहद पर फ़ौज़ियों की हिफ़ाज़त करता आया है किन्तु जब यह अपनी कहानी कहता है तो कुछ इस प्रकार होती है।)

मैं बंकर हूँ
बसती है मुझमें
मुहब्ब्त वतन की
साँस लेता है हरदम
जूनून वतनपरस्ती का
सदियों से मैंने
नहीं देखी रात !

हर पल चौकन्ना
हर आहट पर सतर्क
नहीं झपकता पलकें
नहीं होता उनींदा
क्योंकि
सिर्फ़ एक पल
और लाश में तब्दील
मेरा बाशिंदा !

नहीं देख सकता
बुझती आँखें
बीवी और बिटिया की
तस्वीर थामे
डूबती साँसें
बूढ़े माँ-बाप से
माफ़ी माँगें !

अडिग पहाड़ों पर
अडिग मेरे इरादे
मैंने भी खुद से
कुछ किए हैं वादे
जिस सरज़मीं ने
दी है पनाह
उसकी हिफ़ाज़त में
होना है फ़ना !

आती है कयामत
आ जाए
अरि दल मुझ पर
चढ़ जाए
तोप, गोलियों से
ये धरा पट जाए
लूँगा हर वार
मैं सीने पर
न आने दूँगा आँच
इसकी आन पर!

दूँगा मौत को मात
इसी हौंसले पर
पत्थर हूँ
क्या हुआ?
वतनपरस्त हूँ
इसांन की तरह
गद्दार नहीं हूँ
काले धन का
बैठ कुर्सी पर
मैं करता
व्यापार नहीं हूँ !
नहीं करता
मैं घोटाले
उजली पोशाक
दिल काले !

मैं बंकर हूँ
खड़ा रहूँगा अडिग
जब तक
मेरा आखिरी पत्थर
ध्वस्त न हो जाए
मिटा अपना अस्तित्व
माँ को अर्पण हो जाए
मिट जाए इस पर
इसी से लिपट जाए
मेरा हर कण
इस धरा को
समर्पण हो जाए
मैं बंकर हूँ !

२ अप्रैल २०१२

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter