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अनुभूति में सुशीला शिवराण की रचनाएँ-

छंदमुक्त में-
कुहासा
मैं बंकर हूँ
ऐ सनम

 

कुहासा

फैला कुहासा
चहुँ ओर धुन्ध
प्रकृति का उत्साह
पड़ गया है मंद

ये अलसाई-सी
सीली-सी दोपहर
मन पर पसरी
कोहरे की चादर

मन बुझा-बुझा
तन शीतल-सा
भीतर ही भीतर
कुछ घुटता-सा

प्रकृति संग
जुड़ा तन-मन
पंच-तत्व की काया
कहाँ जुदा हम ?

खिलती हैं कलियाँ
गाता है मन
हर आपदा संग
उजड़ता है जन

प्रकृति है जीवनाधार
असंख्य इसके उपकार
दें हम भी प्रतिदान कुछ
जीवन अपना लें सँवार

२ अप्रैल २०१२

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