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दिल में हमारे

 

 

 

इरादा

चार हो जाते
मिलकर एक
किंतु
इरादा न था
नेक।

जुदाई का ग़म

सफ़र भी न शुरू कर पाए
हम
प्यार का
मिल गया
जुदाई का ग़म।

समय

असर होने लगा
जब मेरी बात का
तुझ पर
समय ही न था
मुलाक़ात का।

तीर

जिगर पर
खूब चलाए तीर
तुमने
और पूछी न
कभी पीर।

बातें

नज़र मिली और
हो गई बातें
आपस में
हाँ
बेचैन हो गई रातें।

याद

झील की गहराई-सी
है उसकी याद
और मैं उसमें
डूब-डूब जाती हूँ
अपनी खुशी के लिए।

कसक

कोई कसक जब
रहती है सीने में
ख़ाक मज़ा आता है
जीने में।

राह

उलझनों से निकलकर
काँटों पे चलकर
मिल ही जाती
राह मंज़िल की।

सत्कर्म

ज़िंदगी एक फूल है
जो महकती है
चहकती है
अपने सत्कर्मों से

दूर-करीब

न काफ़िया मिला
न रदीफ
दर हुए ग़ज़ल से
थे जितना करीब।

घायल दिल

मेरा यह घायल दिल
जानता है अपना कातिल
मगर
!
पूजता है उसको।

पंछी

पिंजड़े में पंछी
फड़फड़ाता रहा
उफ न की
सैयाद सताता रहा।

कश्ती

टूटी हुई कश्ती में
जाना है पार
तूफाँ भी आने को
हो रहा तैयार।

भोर

बस्ती-बस्ती
कूचा-कूचा शोर
फिर भी है
खामोशी की भोर।

३० जून २००८

 

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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