अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

अनुभूति में वशिनी शर्मा की रचनाएँ

छंदमुक्त में-
अब क्या सोचना
क्या हूँ मैं
प्यार बस प्यार है
ये कैसा नारी विमर्श
शिला का अहिल्या होना

 

शिला का अहिल्या होना

क्या अहिल्या इस युग में नहीं है
पति के क्रोध से शापित,
निर्वासित,निस्स्पंद, शिलावत्
वन नहीं भीड़-भाड भरे शहर में,
वैभव पूर्ण-विलासी जीवन में
रोज़ रात को मरती है बिस्तर पर
अनचाहे संबंधों को जीने को विवश
भरसक नकली मुस्कान और
सुखी जीवन का मुखौटा ओढे
एक राम की अनवरत प्रतीक्षा में रत
इस अहिल्या को कौन जानता है?
उस अहिल्या को कम से कम यह तो पता था
कि आएँगे राम अनंत प्रतीक्षारत शिला को
अपने स्पर्श से बदलेंगे अहिल्या में
लौटेगी अपने पति के पास
नया जीवन पाकर हर्षितमना
सब कुछ होगा पहले-सा,
कुटी भी, पति-परमेश्वर भी
पर क्या ये अहिल्या चाहेगी लौटना
अपने उस पति के पास
दिया जिसने शापित जीवन
निर्दोष, निरपराध नारी को
क्या सब कुछ भूल कर
अपनायेगी उस पति को
जो हो सकता है फिर से
दे दे शापित जीवन का उपहार
तब कहाँ से पाएगी
उद्धार का एक और अवसर राम के बिना
पर यक्ष-प्रश्न तब नहीं उठा
तो क्या आज अब नहीं उठेगा
कि आज की ये अहिल्या
अकेली भी तो रह सकती है
क्योंकि राम को तो
आगे और आगे दूर तक जाना है
जहाँ न जाने कितनी शिलाएँ
प्रतीक्षारत हैं अहिल्या होने को
आज के नये राम को भी तो
आगे और आगे जाना है दूर तक
भले ही इसे कामोन्मत्त शूर्पनखा का
दर्प-दमन भी करना न हो
अशोक वाटिका की बंदिनी सीता को
रावण से मुक्त कराना भी न हो
लौट कर अयोध्या सीता को
फिर से शंकित पति की तरह त्यागना भी न हो
तो यक्ष-प्रश्न अब भी है
कि अहिल्या का उद्धार हुआ तो क्या हुआ?
सीता रावण की अशोक-वाटिका से
मुक्त हुई भी तो क्या भला हुआ?
लव-कुश तो फिर भी बिना पिता के ही
आश्रम में पलने को विवश हुए
अंतिम सत्य तो यही है
कि हर युग में राम की नियति
है वह सब करने की
और अहिल्या और सीता की नियति है
फिर फिर उसी जीवन में लौट जाने की

६ मई २०१३

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter