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अनुभूति में विजया सती की रचनाएँ—

छंदमुक्त में-
एक प्रश्न
तीन छोटी कविताएँ
पास आकर
भाषा की ताकत
बातचीत अपने आप से
  पास आकर

जैसे पहाड़ पर बादल उमड़ते हैं
घाटी में कोहरा उतरता है
जैसे किसी सुबह जागने पर
बर्फ़ की चुप्पी घिरी मिलती है,
वैसे ही मेरे मन में
प्यार अकेलापन और थोड़ा सा दुःख
उमड़ता है
उतरता है
घिरता है

जैसे पहाड़ पर बादल
बरस जाते हैं
कोहरा छंट जाता है और बर्फ़ भी
पिघल जाती है
वैसे ही मेरे मन का प्यार



जाता है
अकेलापन छँट जाता है
और दुःख भी पिघल जाता है
...पास आकर !

१३ फरवरी २०१२

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