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अनुभूति में विजया सती की रचनाएँ—

छंदमुक्त में-
एक प्रश्न
तीन छोटी कविताएँ
पास आकर
भाषा की ताकत
बातचीत अपने आप से
  तीन छोटी कविताएँ

महानगर में

खरी धूप में झुलसता रहा
एक आत्मीय आकार
और सधे कदमों में एक ही सुध बाकी थी –
बस छूट जाएगी !

तब और अब

तब मुझे अच्छे लगते थे हरे-भरे खेत
पहाड़ आसमान बादल और छोटी छोटी नहरें
अच्छे तो अब भी हैं वे सब
पर अब मैं वह कहाँ?

ठहरे हुए पल

घड़ी की सुइयों पर दबाव
मैंने नहीं डाला
कैलेण्डर की तारीख को भी
दृष्टि से नहीं बाँधा
फिर भी अगर
ये पल ठहर गए हैं तो क्या
मैं जीना स्थगित कर दूँ कुछ देर के लिए?

१३ फरवरी २०१२

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