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मेरा होना न होना
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समर्पण
सुलझी हुई
पहेली

 

सुलझी हुई पहेली

किसी चमत्कार की तरह
आता है वह
आकर सतह के चारों ओर
फैल जाता है
बिलकुल एक समान
सभी कोनों पर एक-सा समतल
हर अंश में
पूरी तरह से घुलता हुआ।

आत्मा के बाद
दूसरा नंबर उसका है
क़रीब आकर ठहर जाता है वह इस तरह
मानों हो कोई अज़ीज़ सपना,
और जैसे कोई बेहद अपना
इतने नज़दीक
की लगता हैं जैसे अपनी ही साँसे
किसी ठोस वस्तु से टकराने लगी है।
वह चुपचाप से आ कर
हवाओं में फैल जाता है
ख़ुशबू की तरह।

कभी आकर
पहले कुछ देर
बिंदु पर ठहरता है
फिर एक साफ़ सुथरी तस्वीर बन जाता है।
यों उसके पास अक्सर समय
काफ़ी कम होता है
देर से आकर
पल-भर में गुज़र जाता है।

काफ़ी लंबा सफ़र तय किया है
उसने, पर आज तक
कभी थक कर रुकते नहीं देखा।
आज तक के सफर में उसने
बहुत सारे अनुभव कमाए हैं।
अधिकतर वह
खामोश ही रहता है।

आईने की तरह
उसके पारदर्शी आवरण से
चेहरा
समेत रूह के
देखा परखा जा सकता है।
जब वह आपसे बातें करता है तो
सब कुछ असमान्य ढंग से शांत हो जाता है।
आस-पास टहलने वाली हर चीज़
जादुई छड़ी ले आती है
हर पल बेहद तेज़ी से उड़ने लगता है।
हर ओर एक मीठी नदी बहती है
गुनगुनाती हुई
कई अनसुलझी पहेलियाँ अपने आप ही
सुलझने लगती हैं।

1 सितंबर 2007

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