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अनुभूति में चंद्रमोहन भंडारी की रचनाएँ-

आपकी तारीफ़
कहो मैं मेरा कैसे?
कैसा ज़माना आया यारो!
खुदाई
मेरे हिंदोस्ताँ, मेरे वतन

 

खुदाई

खुदा के बंदे बंदगी बयाँ कर
खुदाई का पल-पल दीदार कर
खुदा के दीदार की है गर आस
तो ले खिदमतगारी की हर साँस

खुद की खुशहाली चाहे तू गर
खिदमत खुदाई कर ले जी भर
खिदमतगारी में खुशहाली है
खुदाई लुटाने में दीदारी है

भूल जा मैं मेरा तू तेरा का फेर
बिछा दे खुशहाली का अंबार
मिटा दे जात-पात-धर्म भरा अँधेरा
बना सब ओर इन्सानियत का घेरा

जन्नत दूर नहीं परदेश नहीं
हर मुकाम ही बन जाए जन्नत
कोई रोक लगे न मोल लगे
जहाँ रहो वहीं बनाओ जन्नत

सब मज़हबों धर्मों का धर्मी एक है
बस देश, काल और क्रम का भेद है
इंसान के रंग-रूप भाषा अनेक हैं
पर इंसानियत के पाए एक हैं

इसीलिए हर मज़हब का
हर धर्म का नारा है एक
बस इंसानियत को ही मानो
अनेक नामों वाला मालिक एक

मत कर चिंता उसकी जो न साथ जाएगा
खिदमतगारी का लेखा-जोखा ही काम आएगा
तेरे दर पहुँचते ही जब इतना सुरूर मिलता है
भटकता मन यकायक सहमता शांत हो जाता है

तो तार भी तेरे दर का गरचे जुड़ जाए
याद से स्विच भी ऑन कर लिया जाए
जीवन सफल होगा अवश्य इंशाल्लाह
न हो रत्ती भर भी शक-सुबा बिसमिल्लाह

भगवान तेरी लीला अपरंपार
हर सुख दुख भरा है अपार
न खोज खुशी संसारी चमक दमक में
सुख शांति मिले खुदाई खिदमदगारी में

16 अप्रैल 2007

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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