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अनुभूति में गौतम सचदेव की रचनाएँ-

नई रचनाओं में-
किस लिये
दबे पाँव
रंग सुरों से

अंजुमन में-
अँधेरे बहुत हैं
तन कुचला
नाम गंगा बदल दो
फूल बेमतलब खिले
यह कैसा सन्यास
सच मुखों का यार

लंबी ग़ज़ल-
दिल्ली के सौ रंग

दोहों में-
नया नीति शतक



अँधेरे बहुत हैं

अँधेरे बहुत हैं तभी हैं उजाले
बुझा दीप समझे न देखे न भाले

यहाँ कब अँधेरा मिटे कौन जाने
चलो कुछ बचा लें दिलों के उजाले

चमन आज़माइश करे मौसमों की
मगर और काँटों पे दिल न उछाले

छिपाया जिसे आप दिल ने नज़र से
निकलते नहीं आँसुओं के निकाले

किसी के लिए फूल बन जाएँ कांटे
किसी के लिए फूल बन जाएँ छाले

कहीं रेशमी ख्वाब सचमुच सजे हैं
कहीं रोज़ फाके व ग़म के निवाले

कहो मत नहीं जायका ज़िन्दगी में
मुहब्बत के अब भी बचे हैं मसाले

मुलाक़ात जब भी हुई यह हुआ है
कभी हम संभालें कभी वह संभाले

सूना है कि 'गौतम' ने मुँह सी लिया है
करेगा न अब और हीले-हवाले

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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