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नया नीति शतक



रंग सुरों से

रंग सुरों से भरते पंछी
दुख अपने ख़ुद हरते पंछी

तिनकों के आसन पर बैठे
योगी-सा तप करते पंछी

धुले-पुँछे हरदम निखरे-से
अपने आप सँवरते पंछी

सपनों के पंखों पर उड़ते
नभ से बातें करते पंछी

दुख बाँटें वे अपना किससे
पत्थर दिल पर धरते पंछी

मिली ग़ुलामी इन्सानों की
भूख-प्यास से मरते पंछी

नयनों से नभ ख़ून बहाये
घायल हो जब झरते पंछी

पल भर के मेहमान हमारे
उड़ जाने की करते पंछी

पेड़ बगीचे कैसे रोकें
छोड़ चले संचरते पंछी

पिंजरे में निर्दोष पड़े हैं
बेबस आहें भरते पंछी

जग का इक कोना ही दे दो
माँगें और न डरते पंछी

‘गौतम’ नभ से सब कुछ देखें
ये भवसागर तरते पंछी

१७ अक्तूबर २०११

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