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अनुभूति में मानोशी चैटर्जी की रचनाएँ-

नए गीतों में-
पतझड़ की पगलाई धूप
बदले नयन
शीत का आँचल
शेष समय 

अंजुमन में—
अपनी निशानी दे गया
कोई तो होता
लाख चाहें
ये जहाँ मेरा नहीं है
हज़ार किस्से सुना रहे हो

गीतों में

होली गीत 

कविताओं में—
आज कुछ माँगती हूँ प्रिय
एक उड़ता ख़याल–दो रचनाएँ
कुछ जीर्ण क्षण
चलो
चुनना
ताकत
पुरानी बातें
मेरा साया
लौ और परवाना
स्वीकृति

संकलन में—
दिये जलाओ- फिर दिवाली है
होली है- गुजरता है वसंत
फागुन के रंग- मौसमी हाइकु

 

लौ और परवाना

एक चराग जल रहा था
लौ भी धीमे धड़क रही थी
किसी हवा के झोंके से डर
धीर-धीरे फफक रही थी
काले काजल से डूब कर
धुएं की लकीर निकल रही थी
छाती उसकी जल रही थी
कांपती बाती मचल रही थी
दर्द में डूबा उसका दिल था
बुझने को पर मुकर रही थी
मीत के आने की आस में
दर्द पी के भी जल रही थी
और आया फिर वो परवाना
प्रिया से अपनी बातें करने
न देखा उसने दर्द प्रिया का
सारे दिन की कहानी कहने
चारों तरफ़ उसने लौ की
बलायें ली अब घूम-घूम कर
प्रेम की ज्वाला में जल करके
प्यार जताया हौले से चूम कर
तभी हवा के एक झोंके ने
दो प्रेमी के मिलन से जल के
घेर लिया दोनों को आकर
अपना सौम्य रूप बदल के
परवाना जा लिपटा लौ के दिल से
लौ ने भी पी को गले लगाया
दोनों ने जान दे दी अपनी
रात का साया फिर गहराया
अंधेरा फिर से जाग उठा और
रात ने फिर से ली अंगड़ाई
मगर किसी दीवाने ने आकर
फिर एक दीये की लौ जलाई।

१ सितंबर २००६

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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