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अनुभूति में मीनू बिस्वास की रचनाएँ—

छंदमुक्त में—
आँचल की छाँव
क्या आँखें बोलती हैं
धुँधले अहसास
रिश्तों का ताना बाना
सृष्टि का सृजन


 

  धुँधले एहसास
 
लम्हों के बिखरते तार
टूटती समय की जर-जर ये दीवार
बहती हुई ख़ामोश सी जलधारा
टुटा हुआ पिंजरे का ताला
उड़ा ले गया है
कैद थी जो तेरी चाहत से
घेरे मेरी आशियाने के
कुछ सूखी पगडण्डियाँ
खाली है ये सीढियाँ
बैठ जहाँ
बुने थे कुछ सपने
बंद आखों में,
फिसल गया है
मेरा हाथ से तेरे हाथ
बाकी हैं बस कुछ सिलवटें
उस रेशमी चादर पे
और कुछ रातें
मेरी स्मृति में
धुंधले होते सारे एहसास।

२९ जून २०१५

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