अनुभूति में
मीनू बिस्वास की रचनाएँ—
छंदमुक्त में—
आँचल की छाँव
क्या आँखें बोलती हैं
धुँधले अहसास
रिश्तों का ताना बाना
सृष्टि का
सृजन
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क्या
आँखें बोलती हैं?
क्या आँखें बोलती हैं?
हाँ, बिना कहे कितना कुछ बोल जाती हैं
मन के राज़ आँखे ही तो खोलती हैं
भावनाओं का अतः सागर है ये
समावेश है आवेश, उन्माद, आक्रोश
प्रेम, वासना और छल का
मनोविकार को दर्शाने का सामर्थ है इनमें
फिर क्यों नहीं पढ़ पाते हैं लोग
आँखों की भाषा
शायद! सहज नहीं है ये
संभवतः यदि इन्हें पढ़ पाना सहज होता
तो जान पाते
मनुष्य के भीतर छिपे
कितने ही मीठे और कड़वे सच को
और फिर आसान भी तो नहीं बुद्धा के धैर्य
साईं की शीतलता को अपने में उड़ेल पाना
कैसे नकारें कि ये कलयुग ही तो है
जो अभिशिप्त है फरेब और छल से ...
२९ जून २०१५
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