अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

अनुभूति में शिखा वार्ष्णेय की रचनाएँ

छंदमुक्त में-
चाँद और मेरी गाँठ
जाने क्यों
पर्दा धूप पे
पुरानी कमीज़
यही होता है रोज़

 

पर्दा धूप पे

ना जाने कितने मौसम से होकर
गुजरती है जिन्दगी
झड़ती है पतझड़ सी
भीगती है बारिश में
हो जाती है गीली
फिर कुछ किरणें चमकती हैं सूरज की
तो हम सुखा लेते हैं जिन्दगी अपनी
और वो हो जाती है फिर से चलने लायक
कभी सील भी जाती है
जब कम पड़ जाती है गर्माहट
फिर भी टाँगे रहते हैं हम उसे
कड़ी धूप के इन्तजार में
आज निकली है छनी सी धूप
पर फिर से किसी ने सरका दिया है पर्दा
मेरी जिन्दगी पर पड़ती हुई धूप पे

२६ सितंबर २०११

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter