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अनुभूति में श्रद्धा जैन की रचनाएँ

नई रचनाओं में-
अपने हर दर्द को
कहाँ बनना सँवरना
किसी उजड़े हुए घर को

जब कभी मुझको
जैसे होती थी किसी दौर में

अंजुमन में-
अच्छी है यही खुद्दारी
अफ़साना ए उल्फ़त
कितना है दम चिराग में
किसने जाना
घटा से घिर गई बदली
गम बढ़ा दीजिए
मुश्किलें आई अगर

 

कहाँ बनना सँवरना

कहाँ बनना, सँवरना चाहती हूँ
मैं ख़ुशबू हूँ, बिखरना चाहती हूँ

अब उसके क़तिलाना ग़म से कह दो
मैं अपनी मौत मरना चाहती हूँ

हर इक ख्वाहिश, ख़ुशी और मुस्कराहट
किसी के नाम करना चाहती हूँ

गुहर मिल जाए शायद, सोच कर, फिर
समुन्दर में उतरना चाहती हूँ

ज़माना चाहता है और ही कुछ
मैं अपने दिल की करना चाहती हूँ

है आवारा ख़यालों के परिंदे
मैं इनके पर कतरना चाहती हूँ

कोई बतलाए क्या है मेरी मंज़िल
थकी हूँ, अब ठहरना चाहती हूँ

४ अप्रैल २०११

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