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अनुभूति में डॉ. गोपाल बाबू शर्मा की रचनाएँ-

दोहों में-
नेता जी के पास हैं
फागुनी दोहे

हास्य व्यंग्य में-
खूब गुलछर्रे उडाते जाइये


 

 

गुलछर्रे उड़ाते जाइये

जो मिले उल्लू बनाते जाइये
गुलों के भी गुल खिलाते जाइये

शर्म की चादर उतारें फेंक दें
खूब गुलछर्रे उड़ाते जाइये

शान से चांदी का जूता मार कर
काम सब अपने बनाते जाइये

गरज हो तो बाप गदहे को कहें
अन्यथा आँखें दिखाते जाइये

झांकिये मत खुद गिरेबाँ में कभी
गैर पर अंगुली उठाते जाइये

बाल बन कर सिर्फ ऊँची नाक के
चैन की वंशी बजाते जाइये

दिन नहीं बीड़ा उठाने के रहे
शौक से बीड़ा चबाते जाइये

 

 

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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