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अनुभूति में रामेश्वर शुक्ल 'अंचल' की रचनाएँ

कविताओं में-
काँटे मत बोओ
काननबाला
चुकने दो
तुम्हारे सामने
तृष्णा
द्वार खोलो
दीपक माला
धुंध डूबी खोह
पास न आओ
पावस गान
फिर तुम्हारे द्वार पर
मत टूटो
मेरा दीपक
ले चलो नौका अतल में

संकलन में
ज्योति पर्व-दीपावली
ज्योति पर्व- मत बुझना
तुम्हें नमन-बापू
ज्योतिपर्व- दीपक मेरे मैं दीपों की

  द्वार खोलो

नींद में भीगा हुआ वह स्वर तुम्हारा - द्वार खोलो
तिमिर - स्नाता रात - मैं पथ पर खड़ा हूँ, द्वार खोलो

कौन हो तुम कौन मैं अब तक नहीं पहचान पाई
गंध शीतल कामिनी की ले सजल वातास आई
चौंक कर जागी, खड़ी हूँ खोल वातायन उनींदी
सोचती किस पूर्व परिचित की हृदय-ध्वनि दी सुनाई
कह रही थी मूक मानस की प्रणति-सी बार बोलो
नींद में डूबा हुआ वह स्वर तुम्हारा - द्वार खोलो

कर रहे थे बात यौवन की तरंगित अंग मेरे
पीत केशर सरसिजों से सुरभिवाही अंग मेरे
जल रहा था कक्ष का नवदीप मेरे पुण्य फल-सा
थी जिसे उन्मत्त शलभों की पिपासित पांत घेरे
याद आया - मैं किसी के बाहुओं पर गाल रख कर
मुग्ध सोई थी कभी जब उल्लसित थे मेघ झरझर

एक जाग्रत स्वप्न-सी पथ पर खड़ी हूँ द्वार खोले
बन रहा है स्वप्न वह सुख, तुम न आए तुम न बोले
काल के तूणीर से आया प्रखर क्यों तीर सुधि का
बन गई मेरी पिपासा ही तुम्हारे बोल भोले
मुक्त नील अनंत के यात्री सितारों! आज रो लो
नींद में भीगा हुआ वह स्वर तुम्हारा - द्वार खोलो

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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