| अनुभूति में
                  रघुवीर सहाय की रचनाएँ - 
                   कविताओं में-अधिनायक
 दुनिया
 पढ़िए गीता
 नशे में दया
 बसंत
 बसंत आया
 भला
 लघु रचनाओं में
                  अगर कहीं मैं तोता होता
 चांद की आदतें
 बौर
 पानी के संस्मरण
 प्रतीक्षा
 क्षणिकाओं में वसंत
 चढ़ती स्त्री
 अँग्रेज़ी
 दृश्य(१)
 दृश्य(२)
 संकलन में धूप के पाँव- 
                  धूप
 वर्षा मंगल - 
                  पहला पानी
 |  | बसंत आया 
                  जैसे बहन 'दा' कहती हैऐसे किसी बँगले के किसी तरु (अशोक?) पर -
 कोई चिड़िया कुहकी
 चलती सड़क के किनारे लाल बजरी पर चुरमुराये पाँव तले
 ऊँचे तरुवर से गिरेबड़े-बड़े पियराये पत्ते
 कोई छह बजे सुबह जैसे गरम पानी 
                  से नहायी हो --खिली हुई हवा आई, फिरकी-सी आई, चली गई।
 ऐसे, फुटपाथ पर चलते-चलते-चलते
 कल मैंने जाना कि वसंत आया। और यह कैलेण्डर से मालूम थाअमुक दिन अमुक वार मदनमहीने की होवेगी पंचमी
 दफ्तर में छुट्टी थी -- यह था प्रमाण
 और कविताएँ पढ़ते रहने से यह पता था
 कि दहर-दहर दहकेंगे कहीं ढाक के जंगल
 आम बौर आवेंगे
 रंग-रस-गन्ध से लदे-फंदे दूर के विदेश के
 वे नन्दनवन होवेंगे यशस्वी
 मधुमस्त पिक भौंर आदि अपना-अपना कृतित्व
 अभ्यास करके दिखावेंगे
 यहीं नहीं जाना था कि आज के नगण्य दिन जानूँगा
 जैसे मैंने जाना, कि बसंत आया।
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