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अनुभूति में आभा सक्सेना की रचनाएँ-

अंजुमन में-
आदमी को आदमी के
छपी वहाँ पर
पंछी हम भी टेर बुलाते
पोंछ दे आँसू
रात आँगन में

संकलन में-
सूरज- आसमान में अंकित सूरज
होली है- फाग गीत गाएँ
       रंग जमना चाहिये
बाँसों को झुरमुट- बाँसों के झुरमुट में
बेला के फूल- बागों में बेला खिला
फूल शिरीष के- खिल रहा उन पर शिरीष
शुभ दीपावली- रौशनी नेह की है
रक्षाबंधन- तेरी याद सताती है

 

छपी वहाँ पर

जो हमने दीं हैं वो अर्जियाँ हैं
जमाने भर की निशानियाँ हैं

तुम्हें सुनाई कहाँ हैं देतीं
मेरी ही अपनी जो सिसकियाँ हैं

हुए बुढ़ापे में हम तो जर्जर
तेरे ये काँधे ही बैसाखियाँ हैं

कभी हमारे भी घर पे आओ
नज़र में कितनी ही शोखियाँ हैं

खुदा सलामत रक्खे तुम्हें भी
हमारे घर में दुश्वारियां हैं

हमारे दिल में तुम्हीं तो रहते
छपी वहाँ पर कहानियाँ हैं

१ अक्तूबर २०१६

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