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अनुभूति में आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल' की रचनाएँ-

नई रचनाओं में-
आँखें रहते सूर हो गए
अपने सपने
चुप न रहें
मीत तुम्हारी राह हेरता
मौन रो रही कोयल
संध्या के माथे पर

गीतों में-
ओढ़ कुहासे की चादर
कागा आया है
पूनम से आमंत्रण
मगरमचछ सरपंच
सूरज ने भेजी है

दोहों में-
फागुनी दोहे

  आँखें रहते सूर हो गए

आँखें रहते सूर हो गए
जब हम खुद से दूर हो गए
खुद से खुद की भेंट हुई तो-
जग-जीवन के नूर हो गए

सबलों के आगे झुकते सब
रब के आगे झुकता है नब
वहम अहम् का मिटा सकें तो-
मोह न पाते दुनिया के ढब
जब यह सत्य समझ में आया-
भ्रम-मरीचिका दूर हो गए

सुख में दुनिया लगी सगी है
दुःख में तनिक न प्रेम पगी है
खुली आँख तो रहो सुरक्षित-
बंद आँख तो ठगा-ठगी है
दिल पर लगी चोट तब जाना-
'सलिल' सस्वर सन्तूर हो गए

१९ अप्रैल २०१०

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