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अनुभूति में आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल' की रचनाएँ-

नई रचनाओं में-
आँखें रहते सूर हो गए
अपने सपने
चुप न रहें
मीत तुम्हारी राह हेरता
मौन रो रही कोयल
संध्या के माथे पर

गीतों में-
ओढ़ कुहासे की चादर
कागा आया है
पूनम से आमंत्रण
मगरमचछ सरपंच
सूरज ने भेजी है

दोहों में-
फागुनी दोहे

  चुप न रहें

चुप न रहें
निज स्वर में गाएँ
निविड़ तिमिर में दीप जलाएँ

फिक्र नहीं
जो जग ने टोका
पीर बढ़ा दी हर पग रोका
झेल प्रबलतूफाँ का झोंका
मुश्किल में मुस्कायें

कौन
किसी का सदा सगा है?
अपनेपन ने छला-ठगा है
झूठा नाता नेह पगा है
सत्य न यह बिसराएँ

कलकल
निर्झेर बन बहना है
सुख-दुःख सम चुप रह सहना है
नहीं किसी से कुछ कहना है
रुकें न, मंजिल पाएँ

१९ अप्रैल २०१०

स्वप्नों को आने दो

स्वप्नों को
आने दो, द्वार खटखटाने दो.
स्वप्नों की दुनिया में ख़ुद को
खो जाने दो

जब हम
थक सोते हैं, हार मान रोते हैं.
सपने आ चुपके से उम्मीदें बोते हैं.
कोशिश का हल-बक्खर नित
यथार्थ धरती पर
आशा की मूठ थाम अनवरत
चलाने दो

मन को
मत भरमाओ, सच से मत शर्माओ.
साज उठा, तार छेड़, राग नया निज गाओ.
ऊषा की लाली ले, नील
गगन प्याली ले.
कर को कर तूलिका मन को
कुछ बनाने दो

नर्मदा सा
बहना है, निर्मलता गहना है.
कालकूट पान कर कंठ-धार गहना है.
उत्तर दो उत्तर को, दक्षिण
से आ अगस्त्य
बहुत झुका विन्ध्य दीन अब तो
सिर उठाने दो

क्यों गुपचुप
बैठे हो? विजन वन में पैठे हो.
धर्म-कर्म मर्म मान, किसी से न हेठे हो.
आँख मूँद चलना मत, ख़ुद को
ख़ुद छलना मत.
ऊसर में आशान्कुर पल्लव
उग आने दो

१९ अप्रैल २०१०

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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