अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

अनुभूति में बृजनाथ श्रीवास्तव की रचनाएँ-

नये गीतों में-
अलकापुरी की नींद टूटे
पहले जैसा
प्रेमचंद जी
ये शहर तो

सुनो राजन

गीतों में-
इसी शहर मे खोया
गंध बाँटते डोलो
बुलबुल के घर
सगुनपंछी
होंठ होंठ मुस्काएँगे

 

अलकापुरी की नींद टूटे

सावनी दिन हैं
नदी फिर भी बहुत दुबली

जेठ ने वादा
किया था धूप देगे हम
फिर समुन्दर से
रचेगे मीत घन सावन

किंतु इस
आषाढ ने गाई नही कजली

और पुरवा का पवन तो
द्वार तक आया
किंतु पछुआ ने
उसे कह मित्र भरमाया

नीतिया
वे इन्द्र वाली भी नही बदली

देखिये अलकापुरी की
नीद कब टूटे
पिंड सामंतो कुबेरो से
तनिक छूटे

रात कल
वाली मिलेगी आस है उजली

२२ दिसंबर २०१४

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter