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अनुभूति में बृजनाथ श्रीवास्तव की रचनाएँ-

नये गीतों में-
अलकापुरी की नींद टूटे
पहले जैसा
प्रेमचंद जी
ये शहर तो

सुनो राजन

गीतों में-
इसी शहर मे खोया
गंध बाँटते डोलो
बुलबुल के घर
सगुनपंछी
होंठ होंठ मुस्काएँगे

 

सुनो राजन!

सुनो राजन!
तुम्हारे प्रासाद का गुम्बद
बहुत ऊँचा

गुम्बदों की रोशनी में
खून मेरा ही जला है
और मेरे स्वेदपथ पर
ही तुम्हारा काफिला है

सुनो राजन!
तुम्हारे स्वर्णरथ को हमने
बहुत खींचा

पीढ़ियों दर पीढ़ियों
तुमने हमारा धैर्य जाँचा
रोटियाँ जब-जब तलाशीं
गाल पर पड़ता तमाचा

सुनो राजन!
तुम्हारी राजनय ने हमको
दिया नीचा

हाँ अभी हम हाथ जोड़े
आपके द्वारे खड़े हैं
किंतु राजन! सोचिये हम
लोकजन कितने बड़े हैं

सुनो राजन! सोचिये कैसे रहे
अब हरियर बगीचा

२२ दिसंबर २०१४

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