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अनुभूति में धीरज श्रीवास्तव की रचनाएँ-

नये गीतों में-
कैसे मैं पैबंद लगाऊँ
धूप जिंदगी
बेशर्म आँसू
मुझको नींद नहीं आती माँ
लौट शहर से आते भाई

गीतों में-
जब जब घर आता मैं
दाल खौलती
पल भर ठहरो
भाग रही है
मन का है विश्वास

 

धूप जिन्दगी

इनके उनके सबके मन को
खलता रहता हूँ
हुई जेठ की धूप जिन्दगी
जलता रहता हूँ

सपनों में ही छुपकर मिलने
खुशियाँ मेरे घर आएँ
होंठ चूमती रोज निराशा
नयन मिलातीं आशाएँ

साँझ ढ़ले, इस मन को मैं बस
छलता रहता हूँ

तुम बिन मरना है जी जीकर
पर मरने तक जीना है
पग पग पर विष मिले भले ही
हँसकर मुझको पीना है

चंद लकीरें लिए, हाथ बस
मलता रहता हूँ

भटक रहा हूँ जीवन पथ पर
खोज रहा हूँ रोटी मैं
काट रहा हूँ अपने तन पर
प्रियवर रोज चिकोटी मैं

बिना रुके मैं, बिना थके बस
चलता रहता हूँ

१ मई २०१६

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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