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अनुभूति में धीरज श्रीवास्तव की रचनाएँ-

नये गीतों में-
कैसे मैं पैबंद लगाऊँ
धूप जिंदगी
बेशर्म आँसू
मुझको नींद नहीं आती माँ
लौट शहर से आते भाई

गीतों में-
जब जब घर आता मैं
दाल खौलती
पल भर ठहरो
भाग रही है
मन का है विश्वास

 

मुझको नींद नहीं आती माँ

मुझको नींद नहीं आती माँ।

क्या बात करूँ मैँ दुनिया की
चोली देख फटी धनिया की
चोर निगाहोँ से ये अपनी
बस देख देख मुस्काती माँ

मुझको नींद नहीं आती माँ।

कितने प्यारे कितने सच्चे
भूखे पर धनिया के बच्चे
जब जब भी मैँ उनको देखूँ
फट जाती मेरी छाती माँ

मुझको नींद नहीं आती माँ।

अपने नयनों के वो मोती
छुपकर है रातों में खोती
सूरत फूलों सी बच्चों की
पर देख खड़ी हो जाती माँ

मुझको नींद नहीं आती माँ।

मेरा भी यह हृदय तड़पता
मैं भी उसकी पीर समझता
दुख से लड़ती और झगड़ती
अब वह गीत नहीं गाती माँ।

मुझको नींद नहीं आती माँ।

मैं जैसे भी कुछ कर पाता
पीड़ा कुछ उसकी हर पाता
जख्मों को उसके सहलाऊँ
कुछ मुझको राह दिखाती माँ

मुझको नींद नहीं आती माँ।

१ मई २०१६

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