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अनुभूति में धीरज श्रीवास्तव की रचनाएँ-

नये गीतों में-
कैसे मैं पैबंद लगाऊँ
धूप जिंदगी
बेशर्म आँसू
मुझको नींद नहीं आती माँ
लौट शहर से आते भाई

गीतों में-
जब जब घर आता मैं
दाल खौलती
पल भर ठहरो
भाग रही है
मन का है विश्वास

 
 

पल भर ठहरो

पल भर ठहरो सुनो जिन्दगी
यों मत जाओ छोड़
थोड़ा सा तुम साथ निभा दो
बहुत कठिन है मोड़

वादे अभी निभाने हैँ कुछ
प्रेम तराने गाने हैँ
उलझे उलझे सब धागे हैँ
जो हमको सुलझाने हैँ
आओ मिलकर टूटे बंधन
चलो पुन: दें जोड़

माँ के हाथों से रोटी के,
और निवाले खाने थे!
बाकी था घर अभी बनाना,
काम कई निपटाने थे!
फर्ज प्यार सब अंदर बैठे,
देखो रहे झिंझोड़!

किसने मैली कर डाली है
पतित पावनी माँ गंगा
किसने घोला जहर हवा में
भड़काया किसने दंगा
धर्म सेतु का चलो देख लें
कौन रहा है तोड़

२६ जनवरी २०१५

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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