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अनुभूति में दिवाकर वर्मा की रचनाएँ-

नए गीतों में-
कलफ लगे खादी के कुरते
कहाँ गए दिन
गंगाराम
दिन
सूप खटकाती रही
 

गीतों में-
आदमी बौना हुआ है
चिठिया बाँच रहा चंदरमा
चेहरे से सिद्धार्थ
नदी नाव संजोग
नागफनियाँ मुस्कान में
पटरी से गाड़ी उतरी
फुनगी पर बैठा हीरामन
मैं वही साखी

राम जी मालिक
हुमकती पवन

  आदमी...बौना हुआ है

प्रगति की लंबी छलाँगें मारकर भी
आदमी क्यों इस क़दर बौना हुआ है?

बो रहा काँटे
भले चुभते रहें वे,
पीढ़ियों के
पाँव में गड़ते रहें वे,

रोशनी को छीनकर बाँटें अंधेरा,
राह में अंधा हर एक कोना हुआ है।

मेड़ ही
अब खेत को खाने लगी है
और बदली
आग बरसाने लगी है,

अब पहरुए ही खड़े हैं लूटने को,
मौसमों पर, हाँ, कोई टोना हुआ है।

क्षितिज के
उस पार जाने की ललक में,
नित
कुलाँचें ही भिड़ाता है फलक में,

एक बनने को चला था डेढ़, पर वह
हो गया सीमित कि अब पौना हुआ है।

२६ जनवरी २००९

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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